मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

दुर्गा मंत्र की विशिष्ट साधना

दुर्गा सप्तशती में भगवती दुर्गा के सुन्दर इतिहास के साथ-साथ गूढ़ रहस्यों का भी वर्णन किया गया है। राजा सुरथ ने भी दुर्गा आराधना से ही अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया था। न जाने कितने की आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा मंत्र साधक माँ दुर्गा के सिद्ध मंत्र की साधना कर अपने मनोरथों को पूरा करने में सफलता प्राप्त कर चुके हैं। नवरात्रों अथवा ग्रहण काल में दुर्गा मंत्र की साधना कर आप भी अपने मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं। यह मंत्र साधना सभी प्रकार के फल प्रदान करती है। ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम: - यह आठ अक्षरों का भगवती दुर्गा का सिद्धि मंत्र है जिसका पाठ रक्तचन्दन की 108 दाने की माला से प्रतिदिन शुद्ध अवस्था में साधक को करना चाहिये।
साधना विधि - नवरात्र, सूर्य या चन्द्र ग्रहण के समय अथवा किसी भी शुभ मुहूर्त में इस साधना को करें। नवरात्र में पूरे 9 दिनों तक नियम के साथ दैनिक पूजन और मंत्र जप करें। ग्रहण काल में जितना समय ग्रहणकाल रहता है उतने ही समय तक मंत्र जाप साधना करनी चाहिये। नवरात्र के 9 दिनों की साधना में प्रतिदिन 27 माला जपने का विधान है। 9 दिनों में 24000 मंत्र जप के बाद 9वें दिन इसी मंत्र को पढ़ते हुए 108 बार आहुति देकर हवन करना चाहिये। इस प्रकार यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। इस दुर्गा मंत्र का प्रभाव अचूक है।
यदि साधक ने 9 दिनों तक नियमित मंत्र जप और हवन की क्रिया पूरी कर ली तो वह कभी भी इस मंत्र को पढ़कर, दूब से जल छिड़कते हुये किसी की आपदाओं या बाधाओं का निवारण कर सकता है - चाहे कोई भी आर्थिक संकट हो, भूतादि ग्रहों की पीड़ा हो, प्रेत-पिशाच बाधा हो, दुर्भाग्य हो, नवग्रह पीड़ा हो, रोग अथवा बीमारी हो, शत्रु षडयंत्र की पीडा हो।
दुर्गाजी की प्रतिमा चित्र तथा श्री सिद्ध दुर्गा यंत्र जिसे नवार्ण मंत्र से प्रतिष्ठित किया गया हो। उसे लाल रंग के शुद्ध रेशमी कपड़े पर आसीन करके स्नान करायें। लाल चंदन, पुष्प, दीप व नैवेद्य अर्पित करें, फिर दुर्गाजी की स्तुति और ध्यान करें -

अध्यारूढ़ां मृगेन्द्रं सजल जलधर श्यामलां हस्त पद्मां।
शूलं वाणं कृपाणं त्वसि जलज गदा चाप पाशान् वहन्ती।
चंद्रोतंशां त्रिनेत्रां चितसृणिरसिमाखेटं विभ्रतीभि:।
कन्याभि: सेव्यमाना प्रतिभट भयदां शूलिनीं भावयाम:॥

ध्यान स्तुति के बाद परम तन्मय भाव से उपर्युक्त सिद्ध दुर्गा मंत्र का जाप करे। सिद्ध दुर्गा साधना के लिये सर्वप्रथम शुद्ध स्थान पर आसन बिछाकर, पूजा की सारी सामग्री पहले से वहां रख लें। ताम्र पत्र अथवा भोजपत्र पर रचित श्री सिद्ध दुर्गा यंत्र काठ के पीढ़े पर एक कपड़ा बिछाकर उस पर स्थापित करें। यंत्र तथा मूर्ति अथवा चित्र जो भी हो उसकी रक्त चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप-दीपादि से पूजा करके रक्त चंदन की 108 दाने की माला से दुर्गा अष्टाक्षर मंत्र का 27 माला जप करें। जप के समय घी का दीपक दुर्गाजी के सम्मुख जलाये। विकल्प के रूप में मीठे तेल के दीपक से भी काम चलाया जा सकता है। इस उपासना के लिये ऊनी आसन का ही प्रयोज्य होता है। माला लाल चंदन की, कुशाग्रंथि की अथवा रुद्राक्ष की भी ले सकते हैं। रक्त चंदन की माला सर्वश्रेष्ठ होती है। जप के लिये अर्द्धरात्रि का समय उत्तम होता है।
मंत्र जप समाप्त होने पर पूजा से उठने के पूर्व क्षमा याचना करते हुये दुर्गा जीे की स्तुति पढ़नी चाहिये। स्तुति पढ़ने या याद करने में असुविधा हो तो के वल श्री दुर्गायै नम: का सात बार जप करके देवी की प्रतिमा को क्षमा याचना हेतु प्रणाम करना चाहिये। मंत्र जप हो जाने पर कभी भी, किसी भी प्रकार प्रतिकूलता के शमन की आवश्यकता पडने पर इसे पढ़ते हुए उस पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
सुनील भगत

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