कुंडली का पहला भाव:
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के पहले भाव को लग्न कहा जाता है तथा वैदिक ज्योतिष के अनुसार इसेकुंडली के बारह घरों मेंसबसे महत्त्वपूर्ण घर माना जाता है। किसी भी व्यक्ति विशेष के जन्म केसमय उसके जन्म स्थान पर आकाश में उदित राशि को उस व्यक्ति का लग्न माना जाता है तथाइस राशि अर्थात लग्न को उस व्यक्ति की कुंडली बनाते समय पहले घर में स्थान दिया जाता हैतथा इसके बाद आने वाली राशियों को कुंडली में क्रमश: दूसरे, तीसरे — बारहवें घर में स्थानदिया जाता है।
किसी भी कुंडली में लग्न स्थान अथवा पहले भाव का महत्त्व सबसे अधिक होता है तथा जातक केजीवन के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में इस भाव का प्रभाव पाया जाता है। जातक के स्वभाव तथा चरित्र के बारे में जानने के लिएपहला भाव विशेष महत्त्व रखता है तथा इस भाव से जातक की आयु, स्वास्थ्य,सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे मेंपता चलता है। कुंडली का पहला भाव शरीर के अंगों में सिर, मस्तिष्क तथा इसके आस-पास के हिस्सों को दर्शाता है तथा इस भाव परअशुभ ग्रह का प्रभाव शरीर के इन अंगों से संबंधित रोगों,चोटों अथवा परेशानियों का कारण बन सकता है।
कुंडली के दूसरे भाव को वैदिक ज्योतिष में धन स्थान कहा जाता है तथा किसी भी व्यक्ति कीकुंडली में इस भाव का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। इसलिए किसी कुंडली को देखते समयइस भाव का अध्ययन बड़े ध्यान से करना चाहिए। कुंडली का दूसरा भाव कुंडली धारक के द्वाराअपने जीवन काल में संचित किए जाने वाले धन के बारे मेंबताता है तथा इसके अतिरिक्तयह भाव जातक के द्वारा संचित किए जाने वाले सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात तथा इसी प्रकार केअन्य बहुमूल्य पदार्थों के बारे में भी बताता है। किन्तु कुंडली का दूसरा भाव केवल धन तथा अन्यबहुमूल्य पदार्थों तक ही सीमित नहीं है तथा इस भाव से जातक के जीवन के और भी बहुत से क्षेत्रोंके बारे में जानकारी मिलती है। दूसरा भाव जातक की वाणी तथा उसके बातचीत करने के कौशल केबारे में भी बताता है। शरीर के अंगों में यह भाव चेहरे तथा चेहरे पर उपस्थित अंगों को दर्शाता हैतथा कुंडली के इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने की स्थिति में जातक को शरीर के इन अंगोंसे संबंधित चोटों अथवा बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। कुंडली का दूसरा भाव जातक कीसुनने, बोलने तथा देखने की क्षमता को भी दर्शाता है तथा इन सभी के ठीक प्रकार से काम करनेके लिए कुंडली के इस घर का मज़बूत होना आवश्यक है।
कुंडली का तीसरा भाव:
कुंडली के तीसरे भाव को वैदिक ज्योतिष में बंधु भाव कहा जाता है,कुंडली का तीसरा भाव कुंडलीधारक के पराकर्म को भी दर्शाता है तथा इसिलिए कुंडली के इस भाव को पराक्रम भाव भी कहा जाताहै।
कुंडली के इस भाव से जातक के अपने भाई-बंधुओं,दोस्तों,सहकर्मियों तथा पड़ोसियों के साथ संबधोंका पता चलता है। किसी व्यक्ति के जीवन काल में उसके भाईयों तथा दोस्तों से होने वाले लाभतथा हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कुंडली के इस भाव का ध्यानपूर्वक अध्ययनकरना आवश्यक है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में तीसरा भाव बलवान होता है तथा किसी अच्छे ग्रहके प्रभाव में होता है,ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों, दोस्तों तथा समर्थकों केसहयोग से सफलतायें प्राप्त करते हैं। जबकि दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में तीसरेभाव पर अशुभ बुरे ग्रहों का प्रभाव होता है, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों तथादोस्तों के कारण बार-बार हानि उठाते हैं तथा इनके दोस्त या भाई इनके साथ बहुत जरुरत के समयपर विश्वासघात भी कर सकते हैं।
शरीर के अंगों में यह भाव कंधों तथा बाजुओं को दर्शाता है तथा विशेष रूप से दायें कंधे तथा दायें बाजू को। इसके अतिरिक्त यह भावमस्तिष्क से संबंधित कुछ हिस्सों तथा सांस लेने की प्रणाली को भी दर्शाता है तथा इस भाव पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक कोमस्तिष्क संबंधित रोगों अथवा श्व्सन संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के चौथे भाव को वैदिक ज्योतिष में मातृ भाव तथा सुख स्थान भी कहा जाता है,यह भाव जातक के जीवन में माता की ओर से मिलनेवाले योगदान तथा जातक के द्वारा किए जाने वाले सुखों के भोग को दर्शाता है। चौथा भाव कुंडली का एक महत्त्वपूर्ण भाव है तथा किसी भीक्रूर ग्रह का चौथे घर अथवा चन्द्रमा पर अशुभ प्रभाव कुंडली में मातृ दोष बना देता है। किसी व्यक्ति के जीवन में उसकी माता की ओर सेमिले योगदान तथा प्रभाव को देखने के लिए तथामाता के साथ संबंध और माता का सुख देखने के लिए कुंडली के इस घर का ध्यानपूर्वकअध्ययन करना आवश्यक है।
कुंडली का चौथा भाव व्यक्ति के ज़ीवन में मिलने वाले सुख, खुशियों, सुविधाओं, तथा उसके घर के अंदर के वातावरण अर्थात घर के अन्यसदस्यों के साथ उसके संबंधों को भी दर्शाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में वाहन-सुख, नौकरों-चाकरों का सुख, उसके अपने मकान बननेया खरीदने को भी कुंडली के इस भाव से देखा जाता है। कुंडली में चौथे भाव के बलवान होने से तथा किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में होने सेकुंडली धारक को अपने जीवन काल में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं तथा ऐश्वर्यों का भोग करने को मिलता है तथा उसे बढिया वाहनों कासुख तथा नए मकान प्राप्त होने का सुख़ भी मिलता है। दूसरी ओर कुंडली के चौथे भाव के बलहीन होने की स्थिति में जातक के जीवनकाल में सुख-सुविधाओं का आम तौर पर अभाव ही रहता है। कुंडली का चौथा भाव शरीर के अंगों में छाती, फेफड़ों, हृदय तथा इसके आस-पास के अंगों को दर्शाता है तथा इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को छाती, फेफड़ों तथा हृदय से संबंधित रोगों से पीड़ित करसकता है तथा इसके अतिरिक्त जाताकी मानसिक शांति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।
कुंडली का पाँचवा भाव:
कुंडली के पाँचवे भाव को वैदिक ज्योतिष में संतान भाव कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह भाव संतान प्राप्ति केबारे में बताता है। हालांकि कुंडली के कुछ और तथ्य भी इस विषय में अपना महत्त्व रखते है। यहां पर यह बात घ्यान देने योग्य है कि कुंडलीका पाँचवा घर केवल संतान की उत्पत्ति के बारे में बताता है तथा संतान के पैदा हो जाने के बाद व्यक्ति के अपनी संतान से रिश्ते अथवासंतान से प्राप्त होने वाला सुख को कुंडली के केवल इसी घर को देखकर नहीं बताया जा सकता तथा उसके लिए कुंडली के कुछ अन्य तथ्योंपर भी विचार करना पड़ता है। कुंडली का पाँचवा भाव बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से जातक स्वस्थ संतान पैदाकरने में पूर्ण रुप से सक्षम होता है तथा ऐसे व्यक्ति की संतान आम तौर पर स्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक, शारीरिक तथा बौद्भिकस्तर पर भी सामान्य से अधिक होती है तथा समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम होती है। दूसरी ओर कुंडली का पाँचवा भावबलहीन होने की स्थिति में जातक को संतान की उत्पत्ति में समस्याएं आती हैं।
कुंडली का पाँचवा भाव व्यक्ति के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर को दर्शाता है तथा उसकी कल्पना शक्ति, ज्ञान, शिक्षा, तथा ऐसे ज्ञान तथाशिक्षा से प्राप्त होने वाले व्यवसाय, धन तथा समृद्धि के बारे में भी बताता है।
कुंडली का पाँचवा भाव जातक के प्रेम-संबंधों के बारे में बारे में भी बताता है।
शरीर के अंगों में कुंडली का यह भाव जिगर, पित्ताशय, अग्न्याशय, तिल्ली, रीढ की हड्डी तथा अन्य कुछ अंगों को दर्शाता है। कुंडली केपाँचवे भाव पर किन्हीं विशेष क्रूर ग्रहों का प्रभाव जातक को प्रजनन संबंधित समस्याएं तथा मधुमेह, अल्सर तथा पित्ताशय में पत्थरी जैसीबीमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के छठे भाव को वैदिक ज्योतिष में अरि अथवा शत्रु भाव कहा जाता है तथा कुंडली के इस भाव के अध्ययन से यह पता चल सकता हैकि जातक अपने जीवन काल में किस प्रकार के शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों का सामना करेगा तथा जातक के शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी किस हद तकउसे परेशान कर पाएंगे। कुंडली के छठे भाव के बलवान होने से तथा किसी विशेष शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक अपने जीवन मेंअधिकतर समय अपने शत्रुओं तथा प्रतिद्वंदियों पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है तथा उसके शत्रु अथवा प्रतिद्वंदी उसे कोई विशेषनुकसान पहुंचाने में आम तौर पर सक्षम नहीं होते।
कुंडली का छठा भाव जातक के जीवन काल में आने वाले झगड़ों, विवादों, मुकद्दमों तथा इनसे होने वाली लाभ-हानि के बारे में भी बताताहै। इसके अतिरिक्त कुंडली के इस भाव से जातक के जीवन में आने वाली बीमारियों तथा इन बीमारियों पर होने वाले खर्च का भी पता चलताहै। कुंडली का छठा भाव शरीर के अंगों में पेट के निचले हिस्से को,आँतों को तथा उनकी कार्यप्रणाली को, गुर्दों तथा आस-पास के कुछ औरअंगों को दर्शाता है। कुंडली के इस भाव पर किन्ही विशेष क्रूर ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को कब्ज, दस्त, कमज़ोर पाचन-शक्ति के कारणहोने वाली बीमारियों,पेट में गैस-जलन जैसी समस्याओं, गुर्दों की बीमारीयों तथा ऐसी ही कुछ अन्य बीमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के सातवें भाव को वैदिक ज्योतिष में युवती भाव कहा जाता है तथा कुंडली के इस भाव से मुख्य तौर पर जातक के विवाह औरवैवाहिक जीवन के बारे में पता चलता है। इस प्रकार जातक के विवाह तथा वैवाहिक जीवन से जुड़े अधिकतर प्रश्नों के उत्तर जानने के लिएकुंडली के इस भाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना अति आवश्यक है। विवाह के अतिरिक्त बहुत लंबी अवधि तक चलने वाले प्रेम संबंधों केबारे में तथा व्यवसाय में किसी के साथ सांझेदारी के बारे में भी कुंडली के इस भाव से पता चलता है। कुंडली के सातवें भाव से कुंडली धारकके विदेश में स्थायी रुप से स्थापित होने के बारे में भी पता चलता है, विशेष तौर पर जब यह विवाह के आधार पर विदेश में स्थापित होनेसे जुड़ा हुआ हो।
कुंडली के आठवां भाव:
कुंडली के आठवें भाव को वैदिक ज्योतिष में रंध्र भाव कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह भाव मुख्य तौर परजातक की आयु के बारे में बताता है। किसी कुंडली में आठवें भाव तथा लग्न भाव अर्थात पहले घर के बलवान होने पर या इन दोनों घरों केएक या एक से अधिक शुभ ग्रहों के प्रभाव में होने पर जातक की आयु सामान्य या फिर सामान्य से भी अधिक होती है जबकि कुंडली मेंआठवें भाव के बलहीन होने से अथवा इस भाव पर एक या एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक की आयु पर विपरीत प्रभावपड़ता है। कुंडली का आठवां भाव वसीयत में मिलने वाली जायदाद के बारे में,अचानक प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में,किसी की मृत्यु केकारण प्राप्त होने वाले धन के बारे में तथा किसी भी प्रकार से आसानी से प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में भी बताता है। कुंडली केआठवां भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को बवासीर तथा गुदा से संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित कर सकता है।
कुंडली के नवां भाव:
कुंडली के नौवें भाव को वैदिक ज्योतिष में भाग्य स्थान के नाम से जाना जाता है तथा कुंडली का यह भाव मुख्य तौर पर जातक के पूर्वजन्मों में संचित अच्छे या बुरे कर्मों से इस जन्म में मिलने वाले फलों के बारे में बताता है। कुंडली का नौवां भाव जातक के पूर्वजो के साथभी संबंधित होता है तथा इस भाव से जातक को अपने पूर्वजो से प्राप्त हुए अच्छे या बुरे कर्मफलों के बारे में भी पता चलता है।
कुंडली का नौवां भाव जातक की धार्मिक प्रवृत्तियों के बारे में भी बताता है तथा उसकी धार्मिक कार्यों को करने की रुचि एवम तीर्थ स्थानों कीयात्राओं के बारे मे भी कुंडली के नौवें भाव से पता चलता है। नौवें भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को बहुत धार्मिक बना देता है। कुंडलीका नौवां भाव विदेशों में भ्रमण तथा स्थायी रुप से स्थापित होने के बारे में भी बताता है।
कुंडली के दसवें भाव को वैदिक ज्योतिष में कर्म भाव कहा जाता है,तथा कुंडली का यह भाव मुख्य रूप से जातक के व्यवसाय के साथ जुड़ेउतार-चढ़ाव तथा सफलता-असफलता को दर्शाता है। कुंडली में दसवें भाव के बलवान होने से तथा इस भाव पर एक या एक से अधिक शुभग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने व्यवसायिक जीवन में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा उसका व्यवसायिक जीवन आम तौर पर बहुतसफल रहता है। जातक के अपनी संतान के साथ संबंध तथा संतान से मिलने वाला सुख अथवा दुख देखने के लिए भी कुंडली के इस भाव परविचार करना आवश्यक है।
कुंडली का ग्यारवाँ भाव:
कुंडली के ग्यारहवें भाव को वैदिक ज्योतिष में लाभ भाव कहा जाता है तथा कुंडली कायह भाव मुख्य तौर पर जातक के जीवन में होने वाले वित्तिय तथा अन्य लाभों के बारे में बताता है।ग्यारहवें भाव के द्वारा बताए जाने वाले लाभ जातक द्वारा उसकी अपनी मेहनत से कमाए पैसे केबारे में ही बताएं, यह आवश्यक नहीं। कुंडली के इस भाव द्वारा बताए जाने वाले लाभ बिना मेहनतकिए मिलने वाले लाभ जैसे कि लाटरी में इनाम जीत जाना, सट्टेबाज़ी अथवा शेयर बाजार मेंएकदम से पैसा बना लेना तथा अन्य प्रकार के लाभ जो बिना अधिक प्रयास किए ही प्राप्त हो जातेहैं, भी हो सकते हैं
कुंडली के ग्यारहवें भाव के बलवान होने पर तथा इस भाव पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों काप्रभाव होने पर जातक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अवसरों को शीघ्र ही पहचान जाताहै तथा इन अवसरों का भरपूर लाभ उठाने में सक्षम होता है जबकि कुंडली के ग्यारहवें भाव केबलहीन होने पर जातक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अधिकतर अवसरों को सही प्रकारसे समझ नही पाता तथा इस कारण इन अवसरों से कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाता।
कुंडली के बारहवें भाव को वैदिक ज्योतिष में व्यय भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह भाव मुख्यरुप से जातक के द्वारा अपने जीवन काल में खर्च किए जाने वाले धन के बारे में बताता है तथा साथ ही साथ कुंडली का यह घर यह संकेतभी देता है कि जातक के द्वारा खर्च किए जाने वाला धन आम तौर पर किस प्रकार के कार्यों में लगेगा। कुंडली के बारहवें भाव के बलवानहोने की स्थिति में आम तौर पर जातक की कमाई और व्यय में उचित तालमेल होता है तथा जातक अपनी कमाई के अनुसार ही धन कोखर्च करने वाला होता है, जिसके कारण उसे अपने जीवन में धन को नियंत्रित करने में अधिक कठिनाई नहीं होती जबकि कुंडली केबारहवें भाव के बलहीन होने की स्थिति में जातक का खर्च आम तौर पर उसकी कमाई से अधिक होता है तथा इस कारण उसे अपने जीवन मेंबहुत बार धन की तंगी का सामना करना पड़ता है।
कुंडली का बारहवां भाव जातक की विदेश यात्राओं के बारे में भी बताता है तथा किसी दण्ड के फलस्वरूप मिलने वाला देश निकाला भी कुंडलीके इसी भाव से देखा जाता है। किसी व्यक्ति का अपने परिवार के सदस्यों से दूर रहना भी कुंडली के इस भाव से पता चल जाता है।जातक केजीवन के किसी विशेष समय में उसके लंबी अवधि के लिए अस्पताल जाने अथवा कारावास में बंद होने जैसे विषयों के बारे में जानने के लिएभी कुंडली के इस भाव को देखा जाता है।
बारहवां भाव व्यक्ति के जीवन में मिलने वाले शय्या के सुख के बारे में भी बताता है तथा यह भाव जातक की निद्रा के बारे में भी बताता है।कुंडली के इस भाव पर किन्ही विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव जातक को निद्रा से संबंधित रोग या परेशानियों से पीड़ित कर सकता है।
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