शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

दक्षिण मुखी घर

दक्षिणामुखी प्लाट पर भवन बनाते समय वास्तु-सिद्घांतो का पालन कर ले तो जीवन उत्तर या पूर्व मुखी मकान में निवास करने वालो की तुलना में बहुत ही अच्छा हो सकता है ||
दक्षिणामुखी भवन का वास्तुनियम

● दक्षिणामुखी प्लाट पर
कम्पाउंड वाल एवं घर का मुख्यद्वार दक्षिण आग्नेय में रखे ||
किसी भी कीमत पर दक्षिण नैर्श्रत्य में ना रखे |
● यदि आपको टाउन प्लानिंग से दक्षिण आग्नेय में द्वार रखने की आज्ञा नही मिलती है और दक्षिण नैऋत्य में ही द्वार रखना मजबूरी हो तो ऐसी स्थिति में आप उस प्लाट पर मकान बिलकुल न बनाये ||
● जहाँ दक्षिण आग्नेय का द्वार शुभ होता है वहीँ दक्षिण नैऋत्य का द्वार अशुभ होता है||
●दक्षिण नैॠत्य के द्वार का कुप्रभाव विशेष तौर पर परिवार की स्त्रियों पर ही पड़ता है ||
उन्हें मानसिक शारीरिक कष्ट रहता है ||
और आर्थिक स्थिति को भी खराब करता है ||
● द्वार के इस दोष के साथ ही
मकान के ईशान कोण में भी कोई भी कोई वास्तु दोष हो तो परिवार के किसी सदस्य के साथ अनहोनी हो सकती है ||
● दक्षिण मुखी प्लाट पर घर बनाते समय दक्षिण की तुलना में उत्तर दिशा में और
पश्चिम की तुलना में पूर्व दिशा में खुली जगह अधिक नही छोड़ना चाहिए ||
● घर का निर्माण के समय ध्यान दे
घर का ईशान कोण घटा कटा गोल ऊँचा इत्यादि नही होना चाहिए ||
और नैऋत्य कोण किसी भी तरह से बढ़ा हुआ या नीचा नही होना चाहिए ||
शिवयोगीजी
● घर की ऊंचाई प्लाट से 1 या 2 फुट ऊंची अवश्य रखे और पूरे घर का फर्श का लेवल एक जैसा रखे ||

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गौमुखी प्लाट घर के लिए
और शेरमुखी प्लाट
दूकान के शुभ होते है ||
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● केवल ईशान कोण बढने से
किसी प्लाट का आकार गोमुखी या शेरमुखी हो जाता है जो अत्यंत शुभ होता है ||
● जब कोई प्लाट
एक दिशा में छोटा होकर गोमुखी हो जाता है तो दूसरी दिशा में  बढकर शेरमुखी हो जाता है ||
यह शुभ बढाव उत्तर या पूर्व ईशान किसी एक दिशा में ही होना चाहिए ||
● ईशान कोण के अलावा पूर्व या दक्षिण आग्नेय , दक्षिण या पश्चिम नैऋत्य , पश्चिम या उत्तर वायव्य किसी भी दिशा में प्लाट के बढने से प्लाट गौमुखी या शेरमुखी हो जाता है ||
तो यह बढना अशुभ ही होता है ||
● शुभ गौमुखी प्लाट दक्षिण या पश्चिम मुखी ही होता है ||
● ऐसा प्लाट उत्तर या पूर्व दिशा में गौमुखी हो तो कभी भी शुभ हो ही नही सकता ||

● उत्तर ईशान में उत्तर के साथ मिलकर बढ़ाव होता है तो अत्यधिक ऐश्वर्य प्राप्त होगा ||
अधिक आमदनी एवं स्थिर और अस्थिर सम्पत्ति की वृद्घि होगी ||
● पूर्व ईशान में पूर्व के साथ मिलकर कोने में बढाव होता है तो उस स्थल का स्वामी प्रसिद्घि पाता है || सन्तान वंश और ऐश्वर्य में वृद्घि भी होगी ||
●  पूर्व आग्नेय में पूर्व के साथ मिल कर बढ़ाव होता है तो सन्तान की प्राप्ति नही होती है || यदि होती भी है तो बहुत कम और परिवार में कलह रहती है ||
● दक्षिण के साथ मिल कर दक्षिण आग्नेय में बढ़ाव हो तो पारवारिक झगड़े बीमारियाँ मानसिक व्यथा अशांति और धन का नाश होगा ||
● दक्षिण के साथ मिल कर अगर दक्षिण नैऋत्य में बढ़ाव हो तो मालिक रोगों प्राण-भय और अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित होगा ||

● पश्चिम के साथ मिलकर नैऋत्य में बढ़ाव हो तो धन भारी मात्रा में नष्ट होता है ||
इसके अतिरिक्त मालिक दुस्संगति और कुकर्मो के लिए बहुत धन खर्च करेगा || व्यसनो का दास होगा || जिद्दी भी होगा || समय-स्फूर्ति के अभाव में अधिक धन व्यर्थ करेगा ||
● यदि पश्चिम वायव्य का बढ़ाव पश्चिम के साथ मिलकर होता है तो प्लाट का स्वामी रसिक मिजाज होगा || बधाये आएगी अपमान होगा चिंताओं से ग्रस्त होगा धननष्ट पुत्रनष्ट होगा और गरीबी से पीड़ित होगा ||
● उत्तर के साथ मिलकर अगर उत्तर वायव्य में बढ़ाव होगा तो गरीबी ही होगी सुख का अभाव सन्तान का नाश अपमान अशांति और दुःख ही होगा ||
सुनील भगत 

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