गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:1

||आये एको ही देश ते, उतरे एको ही घाट | समझो का मत एक है, मुरख बारा बाट||

सर्व प्रथम केवल एक ही प्रभु था जो परम अक्षर पुरुष  है | अर्थात पूर्णब्रम्ह जो चारो 
वेद पवित्र गीता व पवित्र कुरान में भी इसका स्पष्ट प्रमाण है | वो अकह अनामी अर्थात
(अनामय) लोक में रहता है | और हम सभी जीव प्राणी भी उसी परमेशवर में ही समाये हुए थे |
जिसको को इन नामो से भी जाना जाता है | निक्षरपुरुष परमअ
क्षरपुरुष शब्दस्वरूपीराम अकालमूरत पूर्णब्रह्म इत्यादि उसके बाद उस परमात्मा ने अप
ने अनामी लोक के नीचे स्वयं प्रकट होकर अपनी शब्द शक्ति से और तीन लोको की रचना की 1 अगमलोक 2 अलखलोक 3 सतलोक उसका नाम अगमलोक में अगमपुरुषअलखलोक में अलखपुरुष सतलोक में सतपुरुष और अकह:अनामी में परमअक्षरपुरुषअर्थात पूर्णब्रह्म यानी पूर्ण परमात्मा ऐसा जानो फिर सतलोक में आकर के उस परमेशवर ने अन्य रचना की जो इस प्रकार है सर्व प्रथम अपने एक शब्द से 16 द्वीपों की रचनाकी उसके बाद 16 शब्द फिर उचारण किये उनसे अपने 16 पुत्रो की उत्पति की उनकेनाम इस प्रकार है 1 कुर्म 2 धैर्य 3 दयाल 4 ज्ञानी 5 योगसंतायन 6 विवेक 7 अचिन्त8 प्रेम 9 तेज 10 जलरंगी 11 सुरति 12 आनन्द 13 संतोष 14 सहज 15 क्षमा 16निष्काम | ये सब निर्गुण प्रभु है |फिर पूर्ण परमात्माने अपने सभी 16 पुत्रो कोअपने अपने 16 द्वीपों में रहने की आज्ञा दी फिर अपने एक पुत्र अचिन्त को अन्य श्रुष्टिरचना करो मेरी शब्द शक्ति से ऐसी आज्ञा दी फिर अचिन्त ने श्रुष्टि की रचना का कामआरंभ किया सर्वप्रथम अक्षरपुरुष अर्थात परब्रह्म की उत्पति की और परब्रह्म से कहा सतलोक में सृष्टि की रचना करने में आप मेरा सहयोग दो | सतलोक में अमृत से भरा हुआमानसरोवर भी है | सतलोक में स्वांसो से शरीर नहीं है और वहा का जल भी अमृत है |एक दिन परब्रह्म मानसरोवर मेंप्रवेश कर गए और वहा आनंद से विश्राम करने लगे अक्षरपुरुष को निंद्रा आ गई और बहुत समय तक सोते रहे तब सतपुरुष ने अपनी शब्दशक्तिसे अमृत तत्त्व से एकअंडा बनाया और उसमे एक आत्मा को प्रवेश किया फिर उस अंडेको आत्मा सहित मानसरोवर में डाल दिया जब वो अंडा गड गड कर के मानसरोवर मेंनीचे जा रहा था उस आवाज से अक्षरपुरुष अर्थात परब्रह्म की निंद्रा भंग हुई और जब कोईअधूरी निंद्रा से जागता है उसके अन्दर कुछ कोप होता है | जैसे ही परब्रह्म कोप दृष्टी सेउस अंडे की तरफ देखा तो उस अंडे के दो भाग होकर उस में से एक क्षरपुरुष अर्थात ब्रह्मनिकला इसको ज्योत स्वरूपी निरंजन भी कहते है वास्त व में इसका नाम कैल है औरयही आगे चल कर काल कहलाया फिर सतपुरुष ने आकाशवाणी की तुम दोनों परब्रह्मऔर ब्रह्म मानसरोवर से बाहर आजा ओ और दोनों अचिन्त के लोक में हम अचिन्त केलोक में जाकर रहने लगे | फिर बहुत समय के बाद इस क्षरपुरुष अर्थात ब्रह्म के मन में
एक युक्ति सुज्जि की क्यों न में अपना अलग राज्य बनाऊ  |


सुनील भगत 

कोई टिप्पणी नहीं: