गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:6

||सेवक सेवा में रहे, सेवक कहिये सोय | कहे कबीरा मुर्ख, सेवक कभी ना होय||

फिर तीनो ने भोग विलास किया सुर तथा असुर दोनों पैदा हुए जब तीसरी बार सागर मंथन किया तो 14 रतन ब्रह्मा को तथा अमृत विष्णु को व देवताओंको मध् अर्थात शराब असु रोंको तथा विष परमारथ शिव ने अपने कंठ में ठहराया जब ब्रह्मा वेद पड़ने लगा तो कोई सर्व ब्रह्मांडो की रचना करने वाला कुल मालिक पुरुष प्रभु तो कोई और है तब ब्रह्माजी ने विष्णुजी व शंकर जी से बताया की वेदों में वर्णन है की सर्जनहार कोई और ही प्रभु है परन्तु वेद कहते है की उस पूर्ण परमात्मा का भेद हम भी नहीं जानते उसके लिए संकेत है की किसी तत्वदर्शी संत से पूछो तब ब्रह्मा माता प्रकृति के पास आया और सब वृतांत कह सुनाया माता कहा करती थी की मेरे अतिरिकत और कोई नहीं हे | में ही कर्ता हूँ और में ही सर्वशक्तिमान हूँ परंतु ब्रह्मा ने कहा वेद इश्वर कृत है ये झूट नहीं हो सकते फिर दुर्गा ने कहा की बेटा ब्रह्मा तेरा पिता तुझे दर्शन नहीं देगा क्योकि उसने प्रतिज्ञा कि हुई है |तब ब्रह्माजी ने कहा की माताजी अब आप की बात पर मुझे अविश्वास हो गया है में उस पुरुष प्रभु का पता लगाकर ही रहूँगा दुर्गा ने कहा की यदि व तुझे दर्शन नहीं देगा तो तुम क्या करोगे?तब ब्रह्माजी ने कहा की में आपको शकल नहीं दिखाऊंगा दूसरी तरफ ज्योत निरंजन ने कसम खाई है की में अव्यक्त ही रहूँगा किसीको दर्शन नहीं दूंगा अर्थात 21 ब्रह्मांड में कभी भी अपने वास्तविक काल रूप आकार में नहीं आऊँगा इस काल भगवान् अर्थात ब्रह्म क्षरपुरुष में त्रुटीया है इसलिए ये अपना साकार रूप प्रकट नहीं करता इसने अपने ब्रह्मलोक में जो तीन स्थान बना रखे है जैसे महाब्रह्मा, महाविष्णु और महाशिव ज्यादा से ज्यादा इन रुपो मे प्रकट होकर इनका साकार रूप में दिखाई दे सकता है पर अपना वास्तविक रूप को छुपाकर रखता है | और किसी को भी अपना ज्ञान होने नहीं देता|सभी रूषीमुनि, महारुषीमुनि बस यही कहते है की वो प्रभु प्रकाश है पर देखने वाली बात यह है की जिसका भी प्रकाश है आखिर वो भी तो अपने वास्तविक रूप में होगा | उदहारण जैसे सूरज का प्रकाश हे तो सूरज भी तो अपने वास्तविक रूप में है | चाँद का प्रकाश हे तो चाँद भी अपने वास्तविक रूप में है | पर ज्ञान न होने के कारण सभी कहते है परमात्मा तो निराकार है जब की वेद कह रहे है की परमात्मा साकार रूप में है वेदों में लिखा हुआ है अग्नेस्तनुअसि अर्थात परमात्मा शहशरीर है | पर जब तक हमको पूर्ण परमात्मा व् श्रुष्टि रचना का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम इस अश्रेष्ठ काल के यानी ब्रह्म के जाल में ही फसे रहेंगे तो अभी चक्कर में न पड़कर आइये पूर्ण परमात्मा का साक्षा त्कार करने के लिए और अपने बिछड़े हुवे परमात्मा से फिर वापिस मिलने के लिये और अपनी आत्मा को हमेशा हमेशा के लिए इस क्षरपुरुष ब्रह्म काल अर्थात ज्योतनिरंजन के जाल से मुक्त करे और जाये अपने सतलोक | प्रभु परम अक्षरपुरुष अर्थात पूर्णब्रह्म परमे श्वर पूर्ण परमात्मा के पास | सारनाम यानी सारशब्द का सुमरण करके | और ये मनुष्य जनम बहुत ही अनमोल है समझदार मनुष्य को इशारा ही काफी होता है |

सुनील भगत  

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