गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:2

कोन ब्रह्मा के पिता है ? कोन विष्णु की माँ ? शंकर के दादा कोन है ?हमको दे बता?

एक युक्ति सुज्जि की क्यों न में अपना अलग राज्य बनाऊ मेरे सब अन्य भाई अलग अल ग एक एक द्वीप में अकेले रहते है और हम एक द्वीप में 3 रहते है अचिन्त, परब्रह्म और में ब्रह्म ज्योतनिरंजन ने ऐसा सोचकर पिताजी यानी पूर्णब्रह्म की 70 युग तक एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या की और जब ये ब्रह्म तपस्या कर रहा था हम सभी आत्मा जो आज काल के लोक में दुःख पा रहे है चाहे कोई देव बना है चाहे कोई महादेव बना है चाहे कोई शुकर बना है चाहे कोई गधा बना है चाहे कोई राजा बना है चाहे कोई रंक बना है पशु या पक्षी बना हुआ है ये सभी की सभी आत्माए हम इस काल अर्थात ब्रह्म के ऊपर आक्षक्त हो गए थे और वही बिमारी आज हमारे अन्दर विधमान है | यही परक्रिया जैसे ये नादान बच्चे किसी हीरो या हेरोइन को देख कर उनकी अदाओ के ऊपर इतने आक्ष्क्त हो जाते है अगर आस पास किसी शहर में वो हीरो अभीनेता या अभीनेत्री आजाये तो लाखो की संख्या में उनके द्रुशनार्थ भीड़ उमड़ जाये और लेना एक ना देने दो कुछ मिलना नहीं उन  से ऐसी वृति हमारी वहाँ बिगड़ी थी हम सतलोक में रहा करते थे अपने पिता के साथ कुछ दुःख नहीं था कोई मृत्यु नहीं थी हमारे परिवार थे हम प्यार से रहा करते थे लेकिन वहाँ हम अपने पतिव्रता पद से गिर गए अपने मूल मालिक उस पूर्णब्रह्म जो सदा सुखदाई जो सदासहाई आत्मा का आधार वास्तव में भगवान् है जो जीवो को दुखी नहीं करता जनम मरण के कष्ट में नहीं डालता कुत्ते और गधे नहीं बनाता उस पूर्ण ब्रह्म को छोड़कर हम इस काल ब्रह्म के उपर आक्ष्क्त हो गए थे |जब इस काल ने 70 युग तप कर लिया तब पूर्ण परमात्मा ने काल ब्रह्म से पूछा भाई क्या चाहता है तू तब इस ज्योत निरंजन काल ने   कहा की पिताजी जहाँ में रह रहा हूँ ये स्थान मुझे कम पड़ता है तथा मुझे अलग से राज्य दो तब उस पूर्णब्रह्म ने इस ब्रह्म के तप के बदले में 21 ब्रह्मांड प्रदान कर दिए जैसे 21 प्लाट दे देता है कोई साहूकार पिता अपने पुत्र को 21 ब्रह्मांडो को पाकर ये ज्योत निरंजन बड़ा प्रसन्न हुआ कुछ दिनों के बाद इसके मन में आया की इन ब्रह्मांडो में कुछ और रचना करू और उस के लिए अन्य सामग्री पिताजी से मांगू इस उदेश्य से इसने फिर 70 युग    तप किया फिर पूर्ण ब्रह्म ने पूछा ज्योत निरंजन अब क्या चाहते हो तुमको 21 ब्रह्मांड तो दे चूका हु तब इस ब्रह्म ने कहा की पिताजी में इन ब्रह्मांडो में कुछ अन्य रचना करना चाह   ता हूँ कृपया रचना करने की सामग्री भी दीजिये फिर सतपुरुष ने इस ब्रह्म को 5 तत्त्व     और 3 गुण और प्रदान कर दिये बाद में ब्रह्म ने सोचा की यहाँ कुछ जीव भी होने चाहिए और मेरा अकेले का मन कैसे लगेगा इस उदेश्य से फिर 64 युग तप किया सतपुरुष ने पूछा अब क्या चाहता है ज्योत निरंजन अब तुझे मेने जो माँगा सो दे दिया तब ब्रह्म ने कहा पिताजी मुझे जीव भी प्रदान करो मेरे अकेले का दिल कैसे लगेगा उस समय सतपुरुष  परमेशवर ने कहा की ज्योत निरंजन तेरे तप के बदले में राज्य दे सकता हूँ और ब्रह्मांड चाहिए वो दे सकता हूँ परन्तु ये अपनी प्यारी आत्मा अपना अंश नहीं दूंगा !

सुनील भगत 

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