गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:5

|| माया सब कहे, माया लखे न कोय | जो मनसे ना उतरे, मया कहिये सोय || 

1 रजोगुण 2 सतोगुण 3 तमोगुण फिर रजोगुण प्रधान क्षेत्र में अपनी पत्नी प्रकृति के साथ रहकर एक पुत्र की उत्पति की उसका नाम ब्रह्मा रखा और ब्रह्माजी में रजोगुण प्रकट हो गये |उसी प्रकार सतोगुण क्षेत्र में रहकर जो पुत्र उत्पन हुआ उसका नाम विष्णु रखा और विष्णु में सतोगुण प्रकट हो गये | फिर तमोगुण क्षेत्र में जो पुत्र उत्पन हुआ उसका नाम शिव रख देता है | और शिव में तमोगुण प्रकट हो जाते है |इसी प्रकार सभी ब्रह्मांडो की रचना की हुई है फिर तीनो पुत्रो की उत्पति करने के पशचात ब्रह्म काल ने अपनी पत्नी दुर्गा से कहा की में प्रतिज्ञा करता हूँ की भविष्य में वापिस में किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा जिस कारण से में अव्यक्त अर्थात निरंकार माना जाऊंगा दुर्गा से कहा की आप मेरा भेद किसी को मत देना में गुप्त रहूँगा दुर्गा ने कहा क्या आप अपने पुत्रो को भी दर्शन नहीं दोगे ? ब्रह्म अर्थात काल ने कहा में अपने पुत्रो को तथा अन्य किसी को भी कोई भी साधना से दर्शन नहीं दूंगा ये मेरा अटल नियम रहेगा | दुर्गा ने कहा ये आप का उत्तम नियम नहीं हे जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे तब काल ने कहा दुर्गा ये मेरी विवशता है मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है यदि मेरी इस सत्यता का पता मेरे तीनो पुत्रो को पता लग गया तो ये उत्पति सिथ्ती तथा सहार का कार्य नहीं करेंगे | इसलिए यह मेरा अनुतम अर्थात घटिया नियम सदा ही बना रहेगा|जब ये तीनो पुत्र जब बड़े हो जाये तो इन्हें अचेत कर देना मेरे विषय में कुछ नहीं बताना नहीं तो में तुझे भी दंड दे दूंगा इस डर के मारे दुर्गा अपने तीनो पुत्रो को वास्तविकता नहीं बताती | जब तीनो पुत्र युवा हो गए तब माता प्रकृति ने कहा की तुम सागर मंथन करो प्रथम बार सागर मंथन किया तो ज्योत निरंजन ने अपने स्वासो द्वारा चार वेद उत्पन किये | उनको गुप्त वाणी द्वारा आज्ञा दी की सागर में निवास करो वो चारो वेद निकले वो चार वेदों को लेकर तीनो बच्चे माता के पास आये तब माता ने कहा की चारो वेदों को ब्रह्मा रखे व पढ़े | नोट: वास्तव में पूर्णब्रह्म ने, ब्रह्म अर्थात काल को पांच वेद प्रदान किये थे लेकिन ब्रह्म काल ने केवल चार वेदों को ही प्रकट किया पांचवा वेद छुपा लिया जो  (कविगिर्भी) अर्थात (कविर्वाणी) कबीर वाणी लोकोकित्यों व दोहों के माध्यम से प्रकट होता है | और इन अज्ञानी नकली गुरुवो और महेंतो ने अपनी अटकल लगाकर और एक वेद बनाया हे जिसको कहते है लोकवेद जिसका पवित्र गीता में वर्णन है | अ : न: 15 के श : 18 में सुना सुनाया ज्ञान अर्थात शास्त्र विरुद्ध साधना |
दूसरी बार सागर मंथन किया तो तीन कन्याये मिली माता ने तीनो को बाँट दिया प्रकृतीने अपने ही अन्य तीन रूप सावि त्री, लक्ष्मी तथा पार्वती धारण किये तथा समु न्दर में छुपा दी सागर मंथन के समय बाहर आ गई वही प्रकृति तीन रूप हुई तथा भग वान् ब्रह्मा को सावित्री भगवान् विष्णु को लक्ष्मी भगवान् शंकर को पार्वती दी |

सुनील भगत 

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