गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:3

||अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार | तीन देव शाखा भये, पात रूप संसार|| 

तुझे ये तो तेरे किसी भी क्रिया धर्म धार्मिक क्रिया से तप से किसी भी जप से नहीं दूंगा हां यदि वो स्वयं कोई हंस आत्मा अपनी इच्छा से तेरे साथ कोई जाना चाहता है तो में स्वीकृति दे सकता हूँ वर्ना नहीं ये सुनकर ब्रह्म ज्योत स्वरूपी निरंजन अर्थात जो भविष्य में काल कह लाया ये हमारे पास आया आज हम जितनी भी दुखी आत्मा इसके 21 ब्रह्मां डो में पीड़ित है और फिर इस काल ने हमसे कहा की मेने तपस्या करके पिताजी से 21 ब्रह्मांड प्राप्त किये हे में वहा पर स्वर्ग बनाऊंगा महास्वर्ग बनाऊंगा और दूध की नदिया और झरने बहाऊंगा ऐसे हमको सपने दिखाये और हमको पूछा की आप मेरे साथ चलना चाहते हो तब हम सब ने कहा अगर पिताजी अनुमति दे तो हम चलने को तैयार है |फिर ये ब्रह्म पिताजी अर्थात पूर्णब्रह्म के पास गया और बोला इन सभी जीव आतमा ओं को में पूछकर आया हूँ वो सब मेरे साथ चलने के लिए तैयार है | ये सुनकर पिताजी अर्थात पूर्ण ब्रह्म जी हम सब आत्माओ के पास आकर पूछा इस ज्योत निरंजन के पास कोन कोन जाना चाहता है अपनी सहमति हमारे सामने व्यक्त करे | उस समय पि ताजी के सामने हम सब आत्मा घबरा गए और किसी की भी हिम्मत नहीं पड़ी अपनी स्वीकृति देने की फिर कुछ समय के बाद एक आत्मा ने सर्व प्रथम हिम्मत की और कहा की पिताजी में इस ब्रह्म के साथ जाना चाहता हूँ फिर पिताजी ने उस आत्माका अंक लिख लिया फिर इसको देखकर हम सभी आत्माओं ने ब्रह्म के साथ जाने की स्वीकृति दे दी जो आज हम इस ब्रह्म अर्थात काल की त्रिलोकी की कारागृह अर्थात कैद में बंद है |और बहुत दुखी भी है | फिर पिताजी अर्थात पूर्णब्रह्म ने ज्योत निरंजन को कहा की तुम अब अपने लोक में चले जाओ में इन सभी आत्माओ को विधिवत तेरे लोक में भेज दूंगा फिर सतपुरुष ने अपनी शब्द शक्ति से सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाली आत्माको एक लड़ की का रूप बनाया और उसको एक शब्द शक्ति भी दे दी और हम सभी जीव आत्माओं को उस लड़की के अंदर प्रवेश कर दिया उस लड़की का नाम प्रकृति अष्टगी महामाया आदि भी कहते है और आगे चल कर ये त्रिदेवोकी माता भी कहलायी फिर पिताजी ने इसको कहा बेटी मेने आपको शब्द की शक्ति दी है ये काल ब्रह्म जितने जीव कहे तू अपने शब्द से बना देना एक बार मुख से उचारण करेगी उतने ही नर मादा जोड़ी की जोड़ी उत्पन हो जायेंगे फिर सतपुरुष ने अपने पुत्र सहजदास को आज्ञा दी की अपनी बहन प्रकृति को लेकर जाओ और ज्योत स्वरूपी निरंजन के पास छोड़आओ और उसको कहना पिताजी ने प्रकृति को शब्द शक्ति दी हे जितने जीव तुम कहोगे ये बना देगी और जितनी भी आ त्माओ ने स्वीकृति दी थी उन सभी आत्माओं को इस प्रकृति देवी में प्रवेश कर दिया है फिर सहजदास प्रकृति देवी को लेकर ज्योतनिरंजन के पास गया और अपने पिताजी की आज्ञा अनुसार सारा काम कर के अपने द्वीप अर्थात लोक में लोट आया | 


सुनील भगत 

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