गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

सतनाम को सारनाम, सारशब्द, सतनाम, सतलोक तथा सतपुरूष कहते हैं।

कबीर, जो जन होगा जौहरी, लेगा शब्द विलगाय। 
सोहं - सोहं जप मुए, व्यर्था जन्म गंवाए।।
कोटि नाम संसार में, उनसे मुक्ति न होए। 
सारनाम मुक्ति का दाता, वाकुं जाने न कोए।।
आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृत वाणी:-
गरीब, सोहं ऊपर और है, सतसुकृत एक नाम। 
सब हंसों का बास है, नहीं बस्ती नहीं गाम।।
सोहं में थे ध्रुव प्रहलादा, ओ3मसोहं वाद विवादा।
नामा छिपा ओ3मतारी, पीछे सोहं भेद विचारी। 
सार शब्द पाया जद लोई, आवागवन बहुर न होई।।


सद्ग्रन्थों के मन्त्रो (श्लोकों) में परमात्मा की महिमा है तथा उसको प्राप्त करने की विधि भी है। जब तक उस विधि को ग्रहण नहीं करेगें तब तक आत्म कल्याण अर्थात् ईश्वरीय लाभ प्राप्ति असम्भव है। जैसे पवित्र गीता अध्याय 17 मन्त्र (श्लोक) 23 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का तो केवल ॐ तत सत मन्त्र है, इसको तीन विधि से स्मरण करके मोक्ष प्राप्ति होती है। ओम् मंत्र ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष का जाप है, तत् मंत्र (सांकेतिक है जो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष का जाप है तथा सत् मन्त्र (सांकेतिक है इसे सत् शब्द अर्थात् सारनाम भी कहते हैं। यह भी उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) पूर्ण ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर पुरूष (सतपुरूष) का जाप है। इस (ॐ-तत्-सत्) के जाप की विधि भी तीन प्रकार से है। इसी से पूर्ण मोक्ष सम्भव है।

सुनील भगत 

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