गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

श्रुष्टि रचना:4

|| चंदन जैसा संत है, सर्प है सब संसार | ताके संग लगा रहे, करत नहीं विचार|| 

आज्ञा अनुसार सारा काम कर के अपने द्वीप अर्थात लोक में लोट आया | युवा होने के कारण लड़की का रूप निखरा हुआ था | इस ज्योत निरंजन अर्थात क्षरपुरुष ब्रह्म के मन में नीचता उत्पन हुई जो आज हम सब प्राणियों में विधमान है वही वृति वही प्रक्रिया अर्थात वही बुरी आदत लड़की को देखकर ज्योत निरंजन ने बदतमीजी करनेकी चेष्टा अर्थात इच्छा प्रगट की प्रकृति ने कहा निरंजन तू जो सोच रहा है वो ठीक नहीं है क्योंकि तू और में एक ही पिता की संतान है पहले अंडे से तेरी उत्पति हुई और फिर पिताजी ने मुझे उत्तपन किया इस नाते से में और तू बहन भाई हुए | बहन और भाई का ये कर्म पाप का भागी होता है तू मानजा मेरी बात | ज्योत निरंजन ने एक भी बात उस लड़की की नहीं मानकर और मदहोश व कामवश व विषयवासना के बस में होकर उस लड़की को पकड़ने की चेष्टा की दुष्कर्म करने के लिए | फिर लड़की ने उस निरंजन से बचने के लिए और कही स्थान ना पाकर जो ही उस काल ने मूह खोला हुआ था आलिंगन करने के लिए बाजू फेलाई थी उसी समय लड़की ने छोटा सा रूप शुक्ष्म रूप बनाया अति सूक्ष्म उसके खोले हुए मूहँ द्वारा उसके पेट में प्रवेश कर गई और अपने पिताजी से पुकार की प्रभु मेरी रक्षा करो मुझे बचाओ ये सुनकर उसी समय पूर्णब्रह्म  ने अपने बेटे योगजीत का रूप बनाकर इस ज्योत निरंजन के लोक में आये और कहा ज्योत निरंजन आपने ये जो नीच काम किया इस सच्चे लोक में ऐसे दुष्ट पापआत्मा को श्राप लगता है | की एक लाख मनुष्य शरीरधारी जीवो का रोज आहार करेगा और सवा लाख जीवो की उत्पति करेगा ये आदेश दिया और कहा के इस सतलोक से अपने 21 ब्रह्मांड और पाँच तत्त्व व तीनो गुणों को और इस प्रकृति देवी को लेकर इस सतलोक से निकल जाओ इतना कहकर प्रकृति को इस ब्रह्म के पेट से निकाल दिया और सतलोक से निष्काषित कर दिया और प्रकृति को भी कहा की तुने इस काल के साथ जाने की स्वीकृति दी थी अभी इसके साथ रहकर तू अपनी सजा भोग इतना कहते ही 21 ब्रह्मांड पाँच तत्त्व तीनो गुण काल और माया वायुयान की तरह वहाँ से चल पड़े और सतलोक से 16 शंख कोस की दुरी पर 21 ब्रह्मांड व इन सबको लाकर शिथर कर दिया | परमात्माने अपनी शब्द शक्ति द्वारा फिर इस काल निरंजन के मन में वही नीचता फिर उत्तपन हुई और कहा की प्रकृति अब मेरा कोन क्या बिगाड़ सकता है अब में मनमाना करूँगा फिर प्रकृतिदेवी ने इसे प्रार्थना की ज्योत निरंजन मुझे पिताजी ने प्राणी उत्तपन करने की शक्ति दी हुई है तुम जितने जीव प्राणी कहोगे में उतने उत्पन कर दूंगी तुम मेरे साथ ये दुशकर्म मत करो लेकिन इस काल निरंजन ने प्रकृति की एक भी बात न मानकर प्रकृतिदेवी अर्थात दुर्गा से जबरदस्ती शादी कर ली |और एक ब्रह्मांड में इस काल ने तीन प्रधान स्थान बनाये अर्थात तीन गुण 1 रजोगुण 2 सतोगुण 3 तमोगुण फिर रजोगुण प्रधान क्षेत्र में अपनी पत्नी प्रकृति के साथ रहकर एक पुत्र की उत्पति की उसका नाम ब्रह्मा रखा और ब्रह्माजी में रजोगुण प्रकट हो गये |

सुनील भगत 

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