परमात्मा की प्यारी आत्माओं,
भक्ति के क्षेत्र में एक अत्यंत ही जरुरी और महत्वपूर्ण पहलू होता है "गुरु" का जिसके बगैर हम इस संसार सागर से पार नहीं हो सकते| गुरु महिमा के विषय में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:-
गुरु बिन भव निधि तरई न कोई|
जो विरंची शंकर सम होई ||
अर्थात बिना गुरु के संसार सागर से कोई पार नहीं हो सकता चाहे वह ब्रम्हा व शंकर के समान ही क्यों न हो|
यही नानकदेव जी कहते हैं:-
गुरु की मूरत मन में ध्याना |
गुरु के शब्द मंत्र मन माना ||
मत कोई भरम भूलो संसारी |
गुरु बिन कोई न उतरसी पारी ||
परमात्मा प्राप्त कर चुकी मीरा बाई ने कहा है:-
पायो जी मैने राम रतन धन पायो |
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि कृपा अपनायो ||
पायो जी मैने राम रतन धन पायो ||
कबीर साहेब ने तो यहॉ तक बताया है :-
राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हूँ भी गुरु कीन |
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ||
भक्ति मार्ग में अब हमें बड़ी गहनता से इस विषय को समझना होगा क्यों कि अब के जो हम चूके तो न जाने कब यह नर तन मिले ना मिले| नर तन मिल भी जाए तो सतगुरु मिले ना मिले क्यों कि:-
गुरु गुरु में भेद है, गुरु गुरु में भाव |
सोई गुरु नित बंदिये,जो शब्द लखावै दाव ||
अब यह बड़ी विडम्बना है कि हम सतगुरु की परख कैसे करें क्यों कि हमारे यहाँ तो गुरूओं की बाढ़ सी आई हूई है तो नीचे गुरुओं की महिमा बताई गयी है जिनमें से सतगुरु को पहचानकर और उनकी सही स्थिति को जानकर अपना नैया पार लगाना है:-
प्रथम गुरु है पिता अरु माता |
जो है रक्त बीज के दाता ||
हमारे माता पिता हमारे प्रथम गुरु हैं |
दूसर गुरु भई वह दाई |
जो गर्भवास की मैल छूड़ाई ||
जन्म के समय व बाद में जिसने हमारा सम्हाल किया वह हमारा दूसरा गुरु है |
तीसर गुरु नाम जो धारा |
सोइ नाम से जगत पुकारा ||
जिसने हमारा नामकरण किया वह तीसरा गुरु है |
चौंथा गुरु जो शिक्षा दीन्हा |
तब संसारी मारग चीन्हा ||
हमें शिक्षा देने वालेअध्यापक चौंथे गुरु कीश्रेंणी में है |
पॉचवा गुरु जो दीक्षा दीन्हा |
राम कृष्ण का सुमिरण कीन्हा ||
हमें अध्यात्म से जोड़ने में पॉचवे गुरु का बहूँत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्यों कि यही वह सीढ़ी है जहॉ से हम भगवान की ओर प्रथम कदम उठाते हैं और नाना प्रकार के (३३करोंड़) देवी देवताओं को पूजते हैं| चतुर्थी, नवमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि व्रतों को करते हूऐ मंदिर, पहाड़, तीर्थाटन आदि करके खुद को मुक्त मानते हैं लेकिन शास्त्रविरुध्द साधना (गीता अ.१६ मंत्र २३-२४) होने से हम सफल नही हो पाते | आगे छठवॉ गुरु को समझें:-
छठवॉ गुरु भरम सब तोड़ा |
"ऊँ" कार से नाता जोंड़ा ||
यह गुरु हमारा भरम निवारण इस आधार पर करता है कि वेद (यजुर्वेद अ.४० मंत्र १५व१७) और गीता (अ.८ मंत्र १३) में केवल एक "ऊँ" अक्षर ब्रम्ह प्राप्ति (मुक्ति) हेतु बताया गया है इसके अलावा किसी अन्य की पूजा नही करनी चाहिए किंतु इनका यह भक्ति साधना भी पूर्ण लाभदायक नही क्यो कि गीता ग्यान दाता (ब्रम्ह) स्वयं गीता में कहता है कि तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं (प्रमाण- गीता अ.२मं.१२, अ.४मं.५व९ तथाअ.१०मं.२) और यह भी स्पष्ट बता दिया कि ब्रम्ह लोक पर्यन्त सब लोक पुनरावृत्ती में है इसलिए यह गुरू भी पूर्ण नहीं| अब सातवॉ गुरु:-
सातवॉ सतगुरू शब्द लखाया|
जहॉ का जीव तहॉ पहूँचाया ||
पुन्यात्माओं इन्हें गुरु नही सतगुरु कहा गया है क्यों कि इनका दिया ग्यान व भक्ति विधि शास्त्रानुकूल होने से इस लोक और परलोक दोनो में परम हितकारक है यह सतगुरु हमें सदभक्ति का दान देकर व हमारा सही ठिकाना बताकर यहॉ काल/ब्रम्ह के २१ ब्रम्हांड से भी और उस पार उस सतलोक को प्राप्त करने की सत साधना प्रदान करता है जिस मार्ग पर चलने वाला साधक जरा और मरण रुपी महाभयंकर रोग से छुटकारा पाकर उस शास्वत स्थान को प्राप्त करता है जिसके बारे में गीता अ.१८ मं.६२ व ६६ में कहा गया है|
सुनील भगत
भक्ति के क्षेत्र में एक अत्यंत ही जरुरी और महत्वपूर्ण पहलू होता है "गुरु" का जिसके बगैर हम इस संसार सागर से पार नहीं हो सकते| गुरु महिमा के विषय में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं:-
गुरु बिन भव निधि तरई न कोई|
जो विरंची शंकर सम होई ||
अर्थात बिना गुरु के संसार सागर से कोई पार नहीं हो सकता चाहे वह ब्रम्हा व शंकर के समान ही क्यों न हो|
यही नानकदेव जी कहते हैं:-
गुरु की मूरत मन में ध्याना |
गुरु के शब्द मंत्र मन माना ||
मत कोई भरम भूलो संसारी |
गुरु बिन कोई न उतरसी पारी ||
परमात्मा प्राप्त कर चुकी मीरा बाई ने कहा है:-
पायो जी मैने राम रतन धन पायो |
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि कृपा अपनायो ||
पायो जी मैने राम रतन धन पायो ||
कबीर साहेब ने तो यहॉ तक बताया है :-
राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हूँ भी गुरु कीन |
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ||
भक्ति मार्ग में अब हमें बड़ी गहनता से इस विषय को समझना होगा क्यों कि अब के जो हम चूके तो न जाने कब यह नर तन मिले ना मिले| नर तन मिल भी जाए तो सतगुरु मिले ना मिले क्यों कि:-
गुरु गुरु में भेद है, गुरु गुरु में भाव |
सोई गुरु नित बंदिये,जो शब्द लखावै दाव ||
अब यह बड़ी विडम्बना है कि हम सतगुरु की परख कैसे करें क्यों कि हमारे यहाँ तो गुरूओं की बाढ़ सी आई हूई है तो नीचे गुरुओं की महिमा बताई गयी है जिनमें से सतगुरु को पहचानकर और उनकी सही स्थिति को जानकर अपना नैया पार लगाना है:-
प्रथम गुरु है पिता अरु माता |
जो है रक्त बीज के दाता ||
हमारे माता पिता हमारे प्रथम गुरु हैं |
दूसर गुरु भई वह दाई |
जो गर्भवास की मैल छूड़ाई ||
जन्म के समय व बाद में जिसने हमारा सम्हाल किया वह हमारा दूसरा गुरु है |
तीसर गुरु नाम जो धारा |
सोइ नाम से जगत पुकारा ||
जिसने हमारा नामकरण किया वह तीसरा गुरु है |
चौंथा गुरु जो शिक्षा दीन्हा |
तब संसारी मारग चीन्हा ||
हमें शिक्षा देने वालेअध्यापक चौंथे गुरु कीश्रेंणी में है |
पॉचवा गुरु जो दीक्षा दीन्हा |
राम कृष्ण का सुमिरण कीन्हा ||
हमें अध्यात्म से जोड़ने में पॉचवे गुरु का बहूँत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्यों कि यही वह सीढ़ी है जहॉ से हम भगवान की ओर प्रथम कदम उठाते हैं और नाना प्रकार के (३३करोंड़) देवी देवताओं को पूजते हैं| चतुर्थी, नवमी, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि व्रतों को करते हूऐ मंदिर, पहाड़, तीर्थाटन आदि करके खुद को मुक्त मानते हैं लेकिन शास्त्रविरुध्द साधना (गीता अ.१६ मंत्र २३-२४) होने से हम सफल नही हो पाते | आगे छठवॉ गुरु को समझें:-
छठवॉ गुरु भरम सब तोड़ा |
"ऊँ" कार से नाता जोंड़ा ||
यह गुरु हमारा भरम निवारण इस आधार पर करता है कि वेद (यजुर्वेद अ.४० मंत्र १५व१७) और गीता (अ.८ मंत्र १३) में केवल एक "ऊँ" अक्षर ब्रम्ह प्राप्ति (मुक्ति) हेतु बताया गया है इसके अलावा किसी अन्य की पूजा नही करनी चाहिए किंतु इनका यह भक्ति साधना भी पूर्ण लाभदायक नही क्यो कि गीता ग्यान दाता (ब्रम्ह) स्वयं गीता में कहता है कि तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं (प्रमाण- गीता अ.२मं.१२, अ.४मं.५व९ तथाअ.१०मं.२) और यह भी स्पष्ट बता दिया कि ब्रम्ह लोक पर्यन्त सब लोक पुनरावृत्ती में है इसलिए यह गुरू भी पूर्ण नहीं| अब सातवॉ गुरु:-
सातवॉ सतगुरू शब्द लखाया|
जहॉ का जीव तहॉ पहूँचाया ||
पुन्यात्माओं इन्हें गुरु नही सतगुरु कहा गया है क्यों कि इनका दिया ग्यान व भक्ति विधि शास्त्रानुकूल होने से इस लोक और परलोक दोनो में परम हितकारक है यह सतगुरु हमें सदभक्ति का दान देकर व हमारा सही ठिकाना बताकर यहॉ काल/ब्रम्ह के २१ ब्रम्हांड से भी और उस पार उस सतलोक को प्राप्त करने की सत साधना प्रदान करता है जिस मार्ग पर चलने वाला साधक जरा और मरण रुपी महाभयंकर रोग से छुटकारा पाकर उस शास्वत स्थान को प्राप्त करता है जिसके बारे में गीता अ.१८ मं.६२ व ६६ में कहा गया है|
सुनील भगत
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