सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

कालरात्री - मां शक्ति का सांतवा स्वरूप

मां शक्ति का सातवां स्वरूप कालरात्रि है । दुर्गा सप्तशती में बताया गया है कि जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का प्रकटीकरण हुआ उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवीयों को भी उत्पन्न किया । सर्वेश्वरी महालक्ष्मी ने ब्रह्मांड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न किया वह देवी ही कालरात्रि हैं । देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है । इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है । इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है । इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है । कालरात्रि का वाहन गर्दभ अर्थात गधा है । मान्यता के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था । इससे चिंतित होकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए । भगवान शिव ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा । शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया । परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए । इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया । इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया और इस तरह से असूरों का नाश हुआ ।


 सुनील भगत

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