गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

चंद्रघंटा - मां का तीसरा स्वरूप

भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चंद्रघंटा के नाम से जानी जाती है । इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है । माता के सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है और इस मुकुट में अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित है जिसके कारण यह देवी चन्द्रघंटा कहलाती है ।मां के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है और इनकी दस भुजाएं है जो खड्ग, बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि से विभूषित हैं । माता का ये स्वरूप सिंह पर विराजमान है । इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है । जब महिषासुर के साथ माता दुर्गा का युद्ध हो रहा था, तब माता ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था । नवरात्र के तीसरे दिन मां चन्द्रघंटा की पूजा होती है । इसका कारण यह है कि माता का पहला रुप और दूसरा रुप भगवान शिव को पाने के लिए है । जब माता भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह अपने आदिशक्ति रुप में आ जाती हैं ।इसलिए माता लाल वस्त्रों में शोभा पा रही हैं । माता के सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है । देवी पार्वती के जीवन की तीसरी बड़ी घटना है मां को उनका प्रिय वाहन बाघ प्राप्त होना । इसलिए इस रुप में माता बाघ पर सवार हैं और अपने आदिशक्ति रुप में भक्तों को दर्शन दे रही हैं । मान्‍यता के अनुसार इनके पूजन से साधक के मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त होती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है । चंद्रघंटा देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है । हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके मां चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों । उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं । मां चंद्रघंटा नाद की देवी हैं, इसलिए इनकी कृपा से साधक स्वर विज्ञान यानी गायन में प्रवीण होता है और मां चंद्रघंटा की जिस पर कृपा होती है, उसका स्वर इतना मधुर होता है कि उसकी आवाज सुनकर हर कोई उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है ।

सुनील भगत

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