परब्रह्म परमेश्वर के
किसी भी स्वरूप, अवतार अथवा देवी – देवता की उपासना के अंतिम चरण में उनके
किसी मन्त्र की कम से कम एक माला का जप अवश्य किया जाता है। प्रायः उनके
नाम के साथ ‘ॐ’ तथा ‘नमः’ लगातार यह जप करने का विधान है। इस रूप में यह
नाम ही उस देवता के मन्त्र का रूप ले लेता है।इसके
साथ ही हनुमान जी, भगवान भैरवजी, माँ काली और भवानी दुर्गा के कुछ चेटक
मन्त्र भी होते हैं। विशिष्ट कामनाओं की पूर्ती हेतु इस प्रकार के मन्त्रों
का उनकी निर्धारित संख्या में जप और उसके बाद उसका दशांश हवन किया जाता
है। माँ काली के ऐसे दर्जनों मन्त्र हैं। इसके साथ ही सबसे अधिक तांत्रिक
सिद्धियां मातेश्वरी काली या फिर भगवान भैरवनाथ की ही की जाती है। तांत्रिक
सिद्धहियों का तो मुख्य आधार ही यंत्र को सम्मुख रखकर मन्त्रों का बहुत
बड़ी संख्या में जप है।
जहाँ अन्य देवी – देवताओं के दो – चार और कुछ के दर्जन एक मन्त्र हैं,
कहीं माँ काली के सौ से भी अधिक विशिष्ट मन्त्र हैं। ऐसा होना स्वाभाविक ही
है। जिस प्रकार माता काली के स्वरूप और शक्तियां सभी देवताओं से अधिक हैं,
ठीक उसी प्रकार सबसे अधिक है माँ काली के मन्त्र भी। यहाँ माता काली के
शीग्र फलदायक और प्रबल शक्तिशाली मन्त्रों तथा अनेक विभित्र रूपों के भी
मन्त्रों का संकलन सभी मन्त्रों में, ‘क्रीं, हूं, हीं और स्वाहा’ शब्दों
का प्रयोग होता है।
इनमें ‘क्री’ का तो अत्यंत विशिष्ट महत्व है। इसमें अक्षर ‘क’ जलस्वरूप और मोक्ष प्रदायक माना जाता है। ‘क्र’ में लगा आधा ‘र’ अग्रि का प्रतीक तथा सभी प्रकार के तेजों का प्रदायक है। ‘ई’ की मात्रा मातेश्वरी के तीन कार्यों – सृष्टि की उत्पत्ति, पालन – धारण और लयकर्त्ता की प्रतीक है जबकि ‘ मात्रा’ के साथ लगा हुआ ‘बिंदू’ उनके ब्रह्मस्वरूप का द्योतक है।
इस प्रकार केवल ‘क्री’ शब्द ही मातेश्वरी के एक पूर्ण मन्त्र का रूप ले लेता है। ‘हूं’ का प्रयोग अधिकांश मन्त्रों में बीजाक्षर के रूप में होता है। इसे ज्ञान प्रदायक माना जाता है।
‘हीं’ शब्द ‘ई’ की मात्रा के समान आद्याशक्ति के सृष्टि – रचयिता, धारणकर्त्ता और लयकर्त्ता रूपों का प्रतीक तथा ज्ञान का प्रदायक है। जहाँ तक मन्त्रों के अंत में लगने वाले ‘स्वाहा’ शब्द का प्रश्र है, यह सभी मन्त्रों का मातृस्वरूप है तथा सभी पापों का नाशक माना जाता है। मन्त्रों में प्रयुक्त होने वाले अन्य अक्षरों के भावार्थ भी इसी प्रकार गूढ़ और रहसयपूर्ण होते हैं। उन अक्षरों और उनसे प्रास ध्वनि का यह रहस्य ही इन मन्त्रों को शक्ति प्रदान करता है।
इनमें ‘क्री’ का तो अत्यंत विशिष्ट महत्व है। इसमें अक्षर ‘क’ जलस्वरूप और मोक्ष प्रदायक माना जाता है। ‘क्र’ में लगा आधा ‘र’ अग्रि का प्रतीक तथा सभी प्रकार के तेजों का प्रदायक है। ‘ई’ की मात्रा मातेश्वरी के तीन कार्यों – सृष्टि की उत्पत्ति, पालन – धारण और लयकर्त्ता की प्रतीक है जबकि ‘ मात्रा’ के साथ लगा हुआ ‘बिंदू’ उनके ब्रह्मस्वरूप का द्योतक है।
इस प्रकार केवल ‘क्री’ शब्द ही मातेश्वरी के एक पूर्ण मन्त्र का रूप ले लेता है। ‘हूं’ का प्रयोग अधिकांश मन्त्रों में बीजाक्षर के रूप में होता है। इसे ज्ञान प्रदायक माना जाता है।
‘हीं’ शब्द ‘ई’ की मात्रा के समान आद्याशक्ति के सृष्टि – रचयिता, धारणकर्त्ता और लयकर्त्ता रूपों का प्रतीक तथा ज्ञान का प्रदायक है। जहाँ तक मन्त्रों के अंत में लगने वाले ‘स्वाहा’ शब्द का प्रश्र है, यह सभी मन्त्रों का मातृस्वरूप है तथा सभी पापों का नाशक माना जाता है। मन्त्रों में प्रयुक्त होने वाले अन्य अक्षरों के भावार्थ भी इसी प्रकार गूढ़ और रहसयपूर्ण होते हैं। उन अक्षरों और उनसे प्रास ध्वनि का यह रहस्य ही इन मन्त्रों को शक्ति प्रदान करता है।
एकाक्षर मन्त्र – क्रीं
यह काली का एकाक्षर मन्त्र
है, परन्तु इतना शक्तिशाली है कि शास्त्रों में इसे महामंत्र की संज्ञा दी
गई है। इसे मातेश्वरी काली का ‘प्रणव’ कहा जाता है और इसका जप उनके सभी
रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। वैसे इसे चिंतामणि
काली का विशेष मन्त्र भी कहा जाता है।
द्विअक्षर मन्त्र – क्रीं क्रीं
इस मन्त्र का भी स्वतन्त्र
रूप से जप किया जाता है लेकिन तांत्रिक साधनाएं और मन्त्र सिद्धि हेतु बड़ी
संख्या में किसी भी मन्त्र का जप करने के पहले और बाद में सात – सात बार इन
दोनों बीजाक्षरों के जप का विशिष्ट विधान है।
त्रिअक्षरी मन्त्र – क्रीं क्रीं क्रीं
यह काली की तांत्रिक साधनाओं
और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मन्त्र है। द्विअक्षर मन्त्र
के समान ही इन दोनों में से किसी एक को मन्त्र सिद्धि अथवा मन्त्रों का बड़ी
संख्या में जप करते समय अनेक तंत्र – साधक प्रारंभ और अंत में सात – सात
बार इसका स्तवन करते हैं।
सर्वश्रेष्ठ मन्त्र – क्रीं स्वाहा
महामंत्र ‘क्रीं’ में ‘स्वाहा’ से संयुक्त यह मन्त्र उपासना अथवा आराधना के अंत में जपने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
ज्ञान प्रदाता मन्त्र : ह्रीं
यह भी एकाक्षर मन्त्र है। माँ
काली की आराधना अथवा उपासना करने के पश्चात इस मन्त्र के नियमित जप से
साधक को सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राॅस हो जाता है। इसे विशेष रूप से
दक्षिण काली का मन्त्र कहा जाता है।
चेटक मन्त्र
उपरोत्त्क सभी मन्त्रों का
विशेष प्रयोजनों के लिए विशिष्ट संख्या में किया जा सकता है। वैसे सभी
कामनाओं की पूर्ति, हर प्रकार के कष्टों के निवारण और माँ की विशेष
अनुकम्पा के लिए चेटक मन्त्रों को उनके साथ वर्णित संख्या में जपा जाता है।
छह से इक्कीस अक्षरों तक के ये मन्त्र निम्रवत हैं –
क्रीं क्रीं क्री स्वाहा
पांच अक्षर के इस मन्त्र के प्रणेता स्वयं जगतपिता ब्रह्मा जी हैं। यह सभी दुखों का निवारण करके धन – धान्य बढ़ता है।
क्रीं क्रीं फट स्वाहा
छह अक्षरों का यह मन्त्र
तीनों लोकों को मोहित करने वाला है। सम्मोहन आदि तांत्रिक सिंद्धियों के
लिए इस मन्त्र का विशेष रूप से जप किया जाता है।
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में समर्थ है। आठ अक्षरों का यह
मन्त्र। उपासना के अंत में इस मन्त्र का जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण
हो जाती हैं।
ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा
ग्यारह अक्षरों का यह मन्त्र
अत्यंत दुर्लभ और सर्वसिंद्धियों को प्रदान करने वाला है। उपरोत्त्क पांच,
छह, आठ और ग्यारह अक्षरों के इन मन्त्रों को दो लाख की संख्या में जपने का
विधान है। तभी यह मन्त्र सिद्ध होता है।
क्रीं हूं हूं ह्रीं हूं हूं क्रीं स्वाहा।
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
नमः आं आं क्रों क्रों फट स्वाहा कालिका हूं।
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।
माँ काली के ये पांच मन्त्र समान रूप से प्रभावशाली हैं। इनमें से प्रत्येक का एक लाख की संख्या में जपकर सिद्ध करने का विधान है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें