शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

स्कंदमाता - देवी का पांचवा स्वरूप

नवरात्र के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवे स्वरुप भगवान स्कन्द की माता अर्थात "मां स्कंदमाता" की उपासना की जाती है । कुमार कार्तिकेय को ही "भगवान स्कंद" के नाम से जाना जाता है । कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति मना जाता है और स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है । इसलिए इन्हें स्नेह और ममता की देवी माना जाता है । स्कंदमाता का रूप अत्यंत सुंदर है । यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं । नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है । बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है । इनका वर्ण एकदम शुभ्र है । यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है । लेकिन माता का वाहन सिंह है । मां शक्ति के कई नाम है, पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवती स्कंदमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं । भगवान शिव के महादेव नाम से ये महादेवी और अपने गौर वर्ण के कारण मां गौरी नाम से भी जानी जाती हैं । मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं । सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है । ये विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है कि स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है ।

सुनील भगत

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