गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

ब्रह्मचारिणी - मां शक्ति का दूसरा स्वरूप

मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है । यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है । ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल है । अपने पूर्व जन्म में जब माता का पुत्री रूप में हिमालय राज के घर जन्म हुआ, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी । इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया । इन्होंने एक हजार वर्ष तक केवल फल खाकर तप किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं । उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में केवल जमीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हजार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं । कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं ।
अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- 'हे देवी । आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी । तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी । भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे । अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ ।'
मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों के लिए अनन्त फलदायी है । इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है । सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है । इसका कारण ये है कि नवरात्र साधना और उपासना का त्योहार है । देवी ब्रह्मचारिणी साधना और तपस्या की देवी है ।
चुंकि देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए तप किया था जिसके बाद माता का विवाह शिव से तय हुआ । मान्यता है कि नवरात्र के दूसरे दिन उन कन्याओं को भोजन करवाने से विशेष फल मिलता है जिनका विवाह तय हो चुका हो ।


सुनील भगत

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