शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

क्या मूति॔-पूजा या दर्शन करना ज़रूरी है ?

यदि जीवित गुरु अच्छे मिलें तो हमें संतोष होगा। लेकिन गुरु का ठिकाना नहीं पड़े, तब तक मूर्ति के दर्शन करें। मूर्ति तो सीढ़ी है, उसे छोड़ना नहीं। जब तक अमूर्त प्राप्त नहीं हो जाए, तब तक मूर्ति छोड़ना नहीं। मूर्ति हमेशा मूर्त ही देगी। मूर्ति अमूर्त नहीं दे सकती। खुद का जो गुणधर्म हो वही करेगी! क्योंकि मूर्ति, वह परोक्ष भक्ति है। ये गुरु भी परोक्ष भक्ति है, लेकिन गुरु में जल्दी प्रत्यक्ष भक्ति होने का साधन है। जीवित मूर्ति हैं, वे। इसलिए प्रत्यक्ष हों वहाँ पर जाना। भगवान की मूर्ति के भी दर्शन करना, दर्शन करने में हर्ज नहीं है। उसमें अपनी भावना है और पुण्य बँधता है, इसलिए मूर्ति के दर्शन करें। 

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