साधना आरंभ करने तथा उसमें निरंतरता बनाए रखने के अनेक लाभ हैं । वास्तव में साधना आरंभ करते ही हमें कुछ न कुछ लाभ अथवा सकारात्मक परिवर्तन अनुभव होने लगता है । प्रत्येक सकारात्मक परिवर्तन से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सुख बढने में अथवा दुख घटने में सहायता मिलती है ।
मन की संतुलित अवस्था
हम सभी अत्यंत गतिशील जीवन जीते हैं । इस गतिशील दिनचर्या से समय निकालकर कदाचित ही कभी कोई पीछे मुडकर अपने जीवन के बारे में व्यापक दृष्टिकोण से विचार करता है ।
इस चित्र में नीले रंग की रेखा यह दर्शाती है कि धीरे-धीरे बाह्य परिस्थितियों से असंतुलित होने का परिमाण घटने लगता है । वास्तव में हमारी भावनात्मक स्थिति अधिक अनुकूल होने लगती है और हम नकारात्मक तथा सकारात्मक परिस्थितियों का सामना शांति से कर पाते हैं । साधन के विषय में हमारे ज्ञान में वृद्धि होने के कारण जीवन को हम और अधिक दार्शनिक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं ।
व्यक्तित्व का विकास
मूलभूत स्वभाव – अंतर्मन के संस्कारों के अनुसार
उपरोक्त चित्र मन को दर्शाता हैै । मन का १/१० वां भाग बाह्य मन है तथा ९/१० वां भाग अंतर्मन का है । जिस हिम शैल से टाइटैनिक जहाज टकराया था, उसके शिखर को देख कोई नहीं कह सकता था कि वह हिम शैल खतरनाक है, क्योंकि वास्तविक विपदा उस शिखर के नीचे बर्फ की ढेर से था । हमारे मन के साथ भी ठीक ऐसा ही है । हमारी भावनाएं और इच्छाएं मूलरूप से हमारे अंतर्मन में अनेक संस्कारों तथा केंद्रों में छिपी हुई हैं । इसके कुछ उदाहरण हैं :-
- वासना केंद्र
- स्वभाव केंद्र
- लेन-देन के हिसाब का केंद्र (संदर्भ के लिए लेख देखें ‘लेन-देन के नियम‘)
हमारा बाह्यमन इन संस्कारों तथा अंतर्मन के केंद्रों से अनभिज्ञ होता है; परंतु यही संस्कार तथा केंद्र हमारी क्रिया और प्रतिक्रिया का कारण तथा व्यक्तित्व का आधार होते हैं । वास्तव में हमारा व्यक्तित्व हमारे संस्कारों का दास है । क्या इस समस्या का समाधान है ? जी है, और जितना हम समझते हैं, उससे भी सरल है ! इसका विवरण विस्तार सहित ‘साधना ‘ भाग में है ।
मन कैसे कार्य करता है एवं संस्कार कैसे निर्माण होते हैं, इस विषय में अधिक जानकारी के लिए ‘मन की संरचना तथा कार्य ‘ लेख पढें ।
तीन सूक्ष्म-स्तरीय मूलभूत घटकों का (त्रिगुणों का) मूल स्वरूप एवं संकल्पना क्या है ?
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आधुनिक शास्त्रों के अनुसार लघु कणों में इलेक्ट्रॉन्स्, प्रोटॉन्स्, मेसॉन्स्, क्वॉर्क्स, ग्लुऑन्स् एवं न्यूट्रॉन्स् का समावेश होता है । जबकि अध्यात्म शास्त्र बताता है कि हम इनसे भी अधिक सूक्ष्म कणों अथवा घटकों से बने हैं । ये घटक सूक्ष्म होते हैं और सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) जैसे साधनों से भी नहीं दिखाई देते । इनका अनुभव केवल सूक्ष्म इंद्रियों से संभव है ।
इन सर्वाधिक सूक्ष्म कणों को त्रिगुण कहते हैं । इनकी रचना आगे दिए अनुसार है :
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अबसे हम इस स्तंभमें इन घटकोंका उल्लेख एकत्ररूपसे सत्त्व, रज, तम गुण तथा उनके विशेषणोंको सात्त्विक, राजसिक, तामसिक संबोधित करेंगें । उदाहरणार्थ, जब हम किसी व्यक्तिको सात्त्विक कहते है, तब उसका अर्थ है उसमें सत्त्वगुण अधिक है ।
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प्रत्येक व्यक्ति इन त्रिगुणों से बना है । तथापि इन त्रिगुणों का अनुपात प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होता है । वह उस व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगल्भता पर निर्भर करता है ।
आज विश्व में सामान्य व्यक्ति में तमगुण अधिक होता है । इन त्रिगुणों के विविध क्रम-परिवर्तन मनुष्य की मूल प्रकृति को परिभाषित करते हैं ।
जब व्यक्ति साधना करने लगता है, तब तमोगुण सत्त्वगुण में परिवर्तित होता है तथा रजोगुण की भी शुद्धि होती है ।
रजोगुण की शुद्धि-प्रक्रिया का आलेख नीचे दिया है ।
अशुद्ध रज वृत्तियां जो किसी समय अनियंत्रित क्रोध अथवा वासनाआें के रूपमें व्यक्त होती थीं, वे साधनाके कारण शुद्ध रजोगुणी अभिव्यक्तियों में परिवर्तित होती हैं । वह व्यक्ति रजोगुण का उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए करता है, जैसे – अन्यों की सहायता एवं ईश्वर की सेवा करना । साधना करने से व्यक्ति में सूक्ष्मू स्तरीय आंतरिक परिवर्तन होता है । इससे व्यक्तित्व में आमूल सुधार दिखाई देता है ।
सहनशक्ति बढना
हममें से प्रत्येक की शारीरिक, भावनात्मक अथवा मानसिक – कष्ट को सहन करने की शक्ति भिन्न होती है जीवन में कभी-कभी हम ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं जो कष्टदायक होती हैं । यह परिस्थिति पीडादायक वैवाहिक संबंध से लेकर प्रियजनों को खो देने जैसी कुछ भी हो सकती है । कष्ट को सहन करने की शक्ति को निम्न उदाहरणों से समझा जा सकता है :-
एक महिला के अत्यधिक क्रोधित होने का कारण यह है कि बाल काटने काली प्रसाधिका ने उसके बाल उसकी अपेक्षा से अधिक काट दिए, इस कष्ट का प्रभाव बहुत दिनोंतक रहता है क्योंकि वह महिला अपने सभी मित्रों से इस बात की शिकायत करती है ।
वास्तविक जीवन से एक उदाहरण – यह उदाहरण उस महिला का है जिसने विवाह के कुछ दिनों के बाद अपना पति खो दिया, यद्यपि उसकी भीषण हानि हुई है; परंतु उसकी साधना के कारण प्राप्त आंतरिक शक्ति से वह न केवल अपना संयम बनाए रखती है अपितु अपने ससुरालवालों को भी धैर्य बंधाती है ।
पहले उदाहरण में एक छोटी सी घटना जैसे बालों का अपेक्षा से अधिक कट जाना तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म देता है जबकि दूसरे उदाहरण में,एक बहुत बड़ी भीषण परिस्थिति जैसे प्रियजन को खो देने का बहुत संयमित व नियंत्रित होकर सामना किया जाता है । हम नहीं जानते कि कौन सी घटना हमें अनियंत्रित कर देगी, जबतक हम घटना का सामना नहीं करते । साधना करने से हमें हर परिस्थिति का सामना सहजता से करने की शक्ति मिलती है ।
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